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इन्द्रा॑ग्नी जरि॒तुः सचा॑ य॒ज्ञो जि॑गाति॒ चेत॑नः। अ॒या पा॑तमि॒मं सु॒तम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indrāgnī jarituḥ sacā yajño jigāti cetanaḥ | ayā pātam imaṁ sutam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑। ज॒रि॒तुः। सचा॑। य॒ज्ञः। जि॒गा॒ति॒। चेत॑नः। अ॒या। पा॒त॒म्। इ॒मम्। सु॒तम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:12» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:11» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्राग्नी) धन और विद्यायुक्त पुरुषो! जो (चेतनः) उत्तम रीति से जाननेवाला (यज्ञः) पूजा करने योग्य पुरुष आप दोनों के (जिगाति) शरण को प्राप्त होवे, वे दोनों आप (जरितुः) स्तुतिकर्ता पुरुष के (सचा) सम्बन्धी हुए (अया) इस विद्या सुशिक्षा सहित वाणी से (इमम्) इस वर्त्तमान (सुतम्) उत्पन्न संसार को (पातम्) पालो ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक और विद्योपदेशक लोगो ! जो पुरुष विद्या के उपदेश ग्रहण करने के लिये आप लोगों के शरण आवें, उनकी जैसे वायु सूर्य्य जगत् की रक्षा करते हैं, वैसे निरन्तर पालना करो ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्राग्नी धनविद्येश्वरौ यश्चेतनो यज्ञो युवां जिगाति तौ जरितुः सचा सन्तावयेमं सुतं पातम् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्राग्नी) ऐश्वर्यविद्यायुक्तौ (जरितुः) स्तावकस्य (सचा) सम्बन्धिनौ (यज्ञः) यष्टुं योग्यः (जिगाति) गच्छति प्राप्नोति (चेतनः) सम्यग् ज्ञाता (अया) अनया विद्यासुशिक्षासहितया वाण्या। अत्र छान्दसो वर्णलोप इति न लोपः। (पातम्) रक्षतम् (इमम्) वर्त्तमानम् (सुतम्) उत्पन्नं संसारम् ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापकोपदेशका ये विद्योपदेशग्रहणाय युष्मान् प्राप्नुयुस्तान् वायुसूर्य्यौ जगदिव सततं रक्षन्तु ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे वायू, सूर्य जगाचे रक्षण करतात तसे हे अध्यापकांनो व विद्योपदेशकांनो! जे पुरुष विद्येचा उपदेश ग्रहण करण्यासाठी तुम्हाला शरण येतात त्यांचे निरंतर पालन करा. ॥ २ ॥